khargosh aur kachua ki kahani , कछुआ और खरगोश की कहानी
एक बार की बात है, जंगल मे एक कछुआ और खरगोश रहते थे दोनों साथ साथ स्कूल जाते थे और अच्छे दोस्त भी थे, आपको मालूम ही होगा बच्चों की खरगोश बहुत तेज दौड़ता है और कछुआ एकदम धीरे-धीरे चलता है।
एक बार की बात है, जंगल मे एक कछुआ और खरगोश रहते थे दोनों साथ साथ स्कूल जाते थे और अच्छे दोस्त भी थे, आपको मालूम ही होगा बच्चों की खरगोश बहुत तेज दौड़ता है और कछुआ एकदम धीरे-धीरे चलता है।
खरगोश रोज कछुए से कहता कि हमारी स्कूल तो आठ बजे शुरू हो जाती है , मैं तो दस मिनट में ही पहुच जाता हूँ स्कूल ! और तुम पूरा एक घंटा लगाते हो स्कूल पहुचने में , अरे भाई मुझसे कुछ सीखो और तेज चलो , समझे !
पहले तो कछुआ खरगोश की बात को हँस के टाल देता था और जब खरगोश रोज-रोज यही कहता तो एक दिन कछुए ने खरगोश से कहा, सुनो ! दोस्त तुम्हे तेज चाल पर घमंड नही करना चाहिए और न ही मेरा मजाक उड़ाओ , भगवान ने सबको अलग-अलग बनाया है , मैं भी तुमसे कम नही हूँ ।
खरगोश ने कहा - क्यो नही तुम मान लेते हो कि तुम्हारी चाल बहुत ही धीमी है, मुझसे बराबरी नही कर सकते हो, समझे ।
यह बात कछुए को बहुत बुरी लगी, कछुए ने कहा ठीक है एक काम करते है, कल रविवार है न और कल हमारी स्कूल को छुट्टी है, हम दोनों दौड़ लगाते है यानी रेस लगाते है ! देखते है इस दौड़ में कौन जीतता है ।
कछुए की बात सुनकर खरगोश जोर-जोर से हसने लगा ! और कहने लगा कि तुम मुझसे मुकाबला नही कर सकते हो तुम हार जाओगे, रेस की बात भूल ही जाओ तो अच्छा है,
फिर कछुए ने कहा ! डर गए क्या की दौड़ नही लगाना चाहते हो, फिर कछुए और खरगोश दोनों ने दौड़ लगाना तय किया ।
अगले दिन छोटा भालू, छोटा हिरण, छोटा हाथी जैसे जानवर कछुआ और खरगोश के दौड़ को देखने के लिए मैदान में आ गए , छोटा हिरण को रेफरी बनाया गया ।
छोटा हिरण के सिटी बजाते ही कछुआ और खरगोश दौड़ पड़े, जंगल के आखिरी छोर पर एक नीम का पेड़ था , वही पर उन दोनों को सबसे पहले जाना था, खरगोस चिल्लाते हुए दौड़ पड़ा , और कछुआ धीरे धीरे चल रहा था,
थोड़ी देर बाद खरगोश रुका और पीछे मुड़ कर देखना लगा और सोचने लगा कि कछुआ तो बहुत धीरे धीरे चल रहा है ऐसे लगता है मैं ही इस दौड़ को जीतने वाला हूँ, और फिर दौड़ने लगा, और कहने लगा देखो सुस्त कछुआ कहाँ पहुँचा है, पर उसे तो कछुआ दिखाई ही नही दे रहा था ।
खरगोश कहने लगा, कछुआ तो बहुत पीछे रह गया है, थोड़ी दूर और दौड़ा , फिर देखा कि नीम का पेड़ तो पास में ही है और मुझे दिखाई दे रहा है । और खरगोश ने कहा , वाह अब तो मैं पहुँच ही गया हूँ, तभी उसे गाजर का खेत दिखाई दिया, खरगोश को गाजर बहुत पसंद है ! फिर खरगोश ने कहा वाह लाल-लाल गाजर ।
चलो थोड़ा खा लेता हूँ, फिर खरगोश ने धीरे-धीरे करके बहुत सारी गाजर खा ली, फिर कहा ! कछुआ तो बहुत दूर है क्यो न मैं आराम कर लूं, फिर कछुआ वही किसी पेड़ के नीचे सो गया, फिर खरगोश को गहरी नींद आ गयी ,और खरगोश खर्राटे लेने लगा,
इधर कछुआ धीरे धीरे चलते हुए मन ही मन कह रहा था कि मुझे रेस जीतनी है , यही बात बार बार दोहराते हुए आ रहा था, और मैं ही जीतूँगा ! और बिना रुके चल रहा था , चलते-चलते कछुआ उस पेड़ के पास पहुंच गया , फिर देखा और कहा ! अरे खरगोश तो सो रहा है , फिर कछुआ बोला मैं उसे नही उठाऊंगा इसे सोने देता हूँ , और नीम का पेड़ भी पास ही में है और मुझे दिखाई भी दे रहा है , लगता है मैं ही जीतने वाला हूँ , यह कहते हुए कछुआ चुपचाप फिर से चल पड़ा ।
थोड़ी देर बाद खरगोश की आंख खुली, तो खरगोश बोला ! अरे शाम हो गयी और मैं बहुत देर सोता रहा , फिर खरगोश इधर-उधर देखा तो कछुआ कही दिखाई नही दिया , कहने लगा ! लगता है सुस्त कछुआ अभी तक नही पहुँचा है और खरगोश तेजी से नीम के पेड़ के पास दौड़ पड़ा , खरगोश जैसे ही नीम के पेड़ के पास पहुँचा ! आश्चर्यचकित हो गया , और बोला ये क्या कछुआ पहले कैसे पहुच गया , और फिर सारे जानवर चिल्लाना शुरू कर दिए , कछुआ-कछुआ-कछुआ !
सभी जानवर तालियां बजा रहे थे, कछुआ जीत गया , एक पल के लिए खरगोश सन्न रह गया है, फिर बोला ! मैं तो थोड़ी देर के लिए सो गया था, मैं नही मानता , मैं तो तेज दौड़ता हूँ ।
अगले रविवार को फिर दौड़ लगाते है, उस समय कछुआ जीत गया तो मैं हर मान लूँगा, यह सून कछुआ मान गया ।
अगले रविवार फिर दोनों में दौड़ हुई , लेकिन इस बार कछुआ हार गया और खरगोश जीत गया, तो खरगोश बोला ! मैंने बोला था न मैं तेज दौड़ता हूँ ।
फिर कछुआ बोलता है कि एक दौड़ तुमने जीता और एक मैंने, एक दौड़ अगले रविवार को फिर लगाएंगे उसमे जो जीतेगा वो चैंपियन होगा, लेकिन पहले तुमने जगह को चूना , इस बार मैं जगह का चुनाव करूंगा !
खरगोश बोला - हाँ-हाँ ठीक है देख लेना मैं ही जीतूँगा ।
कछुआ बोला - मैदान के उस पर जो पहाड़ी दिख रही है न , उस पार जो पहले पहुँचेगा वही जीतेगा, बोलो मजूर है या नही ?
खरगोश बोला - हाँ-हाँ मजूर है मुझे ! अगले रविवार फिर यही मिलेंगे ,
फिर रविवार को दोनों दौड़ लगाते है , इस बार रेफरी की भूमिका निभाई , नन्हे हाथी ने !
फिर दोनों दौड़ पड़े , इस बार फिर खरगोश तेजी से भाग रहा था और कछुआ धीरे धीरे दौड़ रहा था, थोड़ी देर में खरगोश रुक गया , क्योकि वहाँ पर नदी थी, वहाँ पहाड़ नदी के उसपार ।
खरगोश बोला - मैंने तो सोचा ही नही था कि नदी पार करनी पड़ेगी, मैं तो तैरना भी नही जानता हूँ, और यहाँ तो कोई पुलिया भी नही है , क्या करूँ ? कैसे पहाड़ तक पहुँचूँ ? और खरगोश सिर पकड़ के बैठ गया, काफी देर बाद मंद गति से कछुआ आ रहा था , खरगोश ने कछुए से कहा ! कछुआ भाई, लगता है इस बार तुम ही जीतोगे, क्योकि तुम्हे तैरना भी आता है और मुझे तो तैरना भी नही आता है ।
कछुआ बोला - दोस्त , दुःखी मत हो , हमदोनो ही ये दौड़ जीतेंगे, तुम मेरी पीठ और बैठ जाओ और हमदोनो एक साथ पहाड़ पर पहुँचेंगे और इस तरह कोई हारेगा नही , दोनों ही जीत जाएँगे !
और फिर खरगोश कछुए के पीठ पर बैठ गया, कछुआ तैर कर पहाड़ के पास पहुंच गया ।
खरगोश ने कहा - दोस्त मुझे माफ़ कर दो , घमंड में मैं भूल गया कि भगवान ने सबको अलग अलग बनाया है, सबको अलग खूबियां दी है, तुम तैर सकते हो, और मैं तेज दौड़ सकता हूँ, हाँ मुझे एक बात और समझ मे आ गयी दोस्ती में हार-जीत नही बल्कि प्यार होता है, और फिर दोनों हँसने लगे , और दोनों में गहरी दोस्ती हो गयी ।
दोस्तो कैसी लगी कहानी, नीचे कमेंट में लिखकर बताएं , और ही कहानियां आपको इस वेबसाइट पर मिल जाएगी, आप सर्च कर सकते है ।
एक टिप्पणी भेजें