एक बार की बात है, बहुत सारे चूहों ने विजयनगर के लोगों को परेशान कर रखा था। चूहों से छुटकारा पाने की बहुत कोशिशें की गईं। अंत में इस समस्या के हल के लिए राजा ने घोषणा की कि चूहों को पकड़ने के लिए प्रत्येक परिवार को एक-एक बिल्ली दी जाएगी।
बिल्ली की देखरेख का बोझ लोगों पर न पड़े इसलिए प्रत्येक घर को एक-एक गाय भी दी जाएगी जिससे कि उस गाय का दूध बिल्लियों को पिलाया जा सके।
राजा का यह निर्णय तेनालीराम को पसंद नहीं आया और राजा को समझाने के लिए उसने एक योजना बनाई।
तेनालीराम अपनी बिल्ली को पीने के लिए प्रतिदिन गर्म दूध देता। बिल्ली जैसे ही दूध पीती उसकी जीभ बुरी तरह जल जाती इसलिए बिल्ली ने धीरे-धीरे दूध पीना ही छोड़ दिया।
एक दिन राजा बिल्लियों का निरीक्षण करने के लिए शहर गए। राजा ने देख कि सभी घरों की बिल्लियां तो स्वस्थ हैं, परंतु तेनालीराम की बिल्ली बहुत दुर्बल व पतली है।
पूछने पर तेनालीराम बोला, 'यह बिल्ली दूध ही नही पीती।'
तेनालीराम की बात की सत्यता जांचने के लिए राजा के कहने पर बिल्ली को दूध दिया गया, परंतु सदा की तरह अपनी जली जीभ की याद आते ही वह दूध देख तुरंत भाग गई।
राजा समझ गए कि अवश्य ही इसमें तेनालीराम की कोई चाल है। इससे अवश्य ही कुछ ऐसा किया है जिससे कि बिल्ली दूध को देखते ही भाग जाती है।
वे क्रोधित होकर अपने सैनिकों से बोले, 'तेनाली को सौ कोड़े मारे जाएं।'
तेनालीराम ने राजा की ओर देखा और बोला, 'महाराज, मुझे सौ कोड़े मारिए, मुझे इसका कोई दुख नहीं है, परंतु मैं यही सोचता हूं कि जब मनुष्यों को पीने के लिए उपयुक्त मात्रा में दूध उपलब्ध नहीं है, तब बिल्लियों को इस प्रकार दूध पिलाना उचित है?'
राजा को तुरंत ही अपनी गलती का एहसास हो गया। उन्होंने तुरंत आदेश दिया कि गायों के दूध का उपयोग बिल्लियों के बजाय मनुष्यों के लिए किया जाए।
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